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शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी...

तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी ,
ये जुदाई तो महज चंद दिनों की होगी !

फूल - सा चेहरा तेरा गर अभी मुरझायेगा ,
चैन से मेरा सफ़र क्या कभी कट पायेगा ,
तेरी मुस्कान ही मेरे लिए ताक़त होगी !
तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी !!

दूरी चाहत को बढ़ाती है , ये सच है सुन ले ,
आने वाली है खिज़ां , फूल फ़िज़ां के चुन ले ,
जानता हूँ मेरी मौजूदगी जन्नत होगी !
तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी !!

कैसे कट पायेगा दिन , कैसे कटेंगी रातें ,
कैसे कर पायेंगे हम प्यार की मीठी बातें ;
लौट कर आऊंगा तब ख़त्म ये क़ुल्फत होगी !
तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी !!

है ख़ुशी जैसे जरूरी , उसी तरह ग़म भी ,
आँखें होनी चाहिए कभी - कभी नम भी ,
जूझने वालों पे अल्लाह की रहमत होगी !
तेरे रूख्सार पे अश्क़ों की ये बूँदें कैसी !!
ये जुदाई तो महज चंद दिनों की होगी !!


- संकर्षण गिरि

रविवार, 24 जुलाई 2011

नयनाभिराम है दृश्य...

नयनाभिराम है दृश्य ,
क्योंकि तक रहे नयन हैं तुमको !

अखिल सृष्टि के कोलाहल में ज्यों कोकिल की वाणी ,
अंतर के सूनेपन को भरने वाली कल्याणी !
आज हिलोरें मार रहा उर पा अपनी प्रेयसी को ,
आज नयन के कोरों में उठ छलक पड़ा है पानी !

आज अलौकिकता को मैंने अपनी बाहों में घेरा ,
आज भुवन संपूर्ण मुझे दिखलाई पड़ता है मेरा ;
आज होड़ है आसमान से , इन्द्रधनुष से ,
आज चन्द्रमा को गुदगुदी लगाई , तारों को छेड़ा !

पोर - पोर में ख़ुशी ,
क्योंकि छक रहे नयन हैं तुमको !
नयनाभिराम है दृश्य ,
क्योंकि तक रहे नयन हैं तुमको !


- संकर्षण गिरि