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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

 
 
 
छोटी - छोटी बातों से तुम व्यर्थ परेशाँ होते हो !
 
 
छोटी - छोटी बातों से तुम व्यर्थ परेशाँ होते हो !
इनसे निजात पाने को बस मुस्कान एक ही काफ़ी  है !!
 
मंज़िल का रस्ता भटक गये तो नई राह ईज़ाद करो !
वरना पैरों में खौफ़ भरने को ख़ार एक ही काफ़ी  है !!
 
अपने गुनाह पर दिल से शर्मिन्दा हो तो यह बात सुनो !
आँखों से आँसू की बस बरसात एक ही काफ़ी है !!
 
दुनिया की बेतरतीब चाल रोके , कोई दीवार बने !
बदलाव का जज़्बा हो तो बस इंसान एक ही काफ़ी है !!
 
मिट्टी का चलता फिरता बुत जादुई है , लासानी है !
ऐसा अज़ीम ऊपर वाला कुम्हार एक ही काफ़ी है !!
 
कुछ भी कहते रहें लोग पर 'गिरि' का कहना है ऐसा !
मिल जाए ग़र सच्चा तो अहबाब एक ही काफी है !!
 
 
- संकर्षण गिरि