स्वप्न की जब सत्य से टक्कर हुई , किस्मत मेरी कुछ और भी जर्जर हुई !
छोटी - सी उम्र में बड़े अनुभव हुए , रुसवाइयाँ हुईं तो वो जम कर हुईं !
वक़्त का चेहरा बड़ा मासूम है , धोखे में रहा , गलती ये अक्सर हुई !
पत्थर है वो , पूजा के काबिल , मैं फूल, मेरी दुर्गति खिल कर हुई !
दूर से ही दीखता है चाँद निर्मल , घनघोर निराशा उसे छू कर हुई !
'गिरि' का घर लुटा , मनमीत छूटा , आइना साथी , ज़मी बिस्तर हुई !
- संकर्षण गिरि