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बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

वर्ष नव ,
हर्ष नव ,
जीवन उत्कर्ष नव !

नव उमंग ,
नव तरंग ,
जीवन का नव प्रसंग !

नवल चाह ,
नवल राह ,
जीवन का नव प्रवाह !

गीत नवल ,
प्रीति नवल ,
जीवन की रीति नवल !
जीवन की नीति नवल !
जीवन की जीत नवल !

- बच्चन जी !

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

उनसे महज़ दोस्ती की है ...



उनसे महज़ दोस्ती की है !
पर उनके नाम ज़िन्दगी की है !!

ग़म को ख़ुशी के चिराग़ों में डाल कर !
बुझते हुए वक़्त पे रौशनी की है !!

आशियाने का सपना पूरा हुआ आख़िर !
खुद के नाम दो गज ज़मीं की है !!

कोई और न आ कर कुचल डाले इन्हें !
अरमानों ने यही सोच कर ख़ुदकुशी की है !!

'गिरि' ने खुद को गुनाहगार साबित कर के !
कई दिलों के बीच फ़ासले में कमी की है !!


- संकर्षण गिरि

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

जब से मैं खुद से मिला हूँ ...


जब से मैं खुद से मिला हूँ !

मैं अकेला हो चला हूँ!



चाँद खुद से नहीं रौशन ,

मैं मगर जलता दीया हूँ !



ठोकर लगी तो बैठ जाऊं ?

आँधियों का सिलसिला हूँ !



वो मुझमे देखता है अक्स अपनी ,

महबूब का मैं आइना हूँ !



फूल जैसे धूल में लिपटे हुए हों ,

जैसा भी हूँ अपनी माँ का लाड़ला हूँ !





- संकर्षण गिरि