जीवन ने मुझको खूब छला !
जन्म और मृत्यु के बीच ,
खुद को डाला आँसू में सींच ,
शीतलता अनुभव करने के पहले मैं सौ - सौ बार जला !
जीवन ने मुझको खूब छला !
मैं गगन चाहता था छूना ,
और मिला मुझे पथ भी सूना ,
पार भाग्य ने हर उस राह को मोड़ा मैं जिसकी भी ओर चला !
जीवन ने मुझको खूब छला !
जीवन की परिभाषा क्या है ?
और मेरी अभिलाषा क्या है !
इस बर्बर उधेड़बुन की गोदी में हूँ मैं पला - बढ़ा !
जीवन ने मुझको खूब छला !
- संकर्षण गिरि