इक अजब - सा द्वन्द्व मन में !
क्या करूँ , थोडा व्यथित हूँ ,
स्वयं से ही मैं चकित हूँ ,
क्यों मुझे संघर्ष करना पड़ रहा इन्द्रिय - दमन में !
इक अजब - सा द्वन्द्व मन में !
पत्थर बनूँ या फूल कोमल ,
फ़ैसला करने में असफल ,
उर को जब भी ठेस पहुँची , आ गए आँसू नयन में !
एक अजब - सा द्वन्द्व मन में !
लक्ष्य दीखता सामने है ,
ताक़त नहीं पर पाँव में है ,
हँस दूँ अपने भाग्य पर या डूब जाऊँ मैं रुदन में !
इक अजब - सा द्वन्द्व मन में !
पूर्णता संभव नहीं है ,
कहता मेरा अनुभव यही है ,
गंध तो होता है किन्तु कीट भी होते सुमन में !
इक अजब - सा द्वन्द्व मन में !
- संकर्षण गिरि