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रविवार, 3 अप्रैल 2011

स्वप्न की सत्य से टक्कर ...




स्वप्न की जब सत्य से टक्कर हुई , किस्मत मेरी कुछ और भी जर्जर हुई !


छोटी - सी उम्र में बड़े अनुभव हुए , रुसवाइयाँ हुईं तो वो जम कर हुईं !


वक़्त का चेहरा बड़ा मासूम है , धोखे में रहा , गलती ये अक्सर हुई !


पत्थर है वो , पूजा के काबिल , मैं फूल, मेरी दुर्गति खिल कर हुई !


दूर से ही दीखता है चाँद निर्मल , घनघोर निराशा उसे छू कर हुई !


'गिरि' का घर लुटा , मनमीत छूटा , आइना साथी , ज़मी बिस्तर हुई !



- संकर्षण गिरि

1 टिप्पणी:

  1. स्वप्न की जब सत्य से टक्कर हुई ,
    किस्मत मेरी कुछ और भी जर्जर हुई !
    छोटी - सी उम्र में बड़े अनुभव हुए ,
    रुसवाइयाँ हुईं तो वो जम कर हुईं !
    वक़्त का चेहरा बड़ा मासूम है ,
    धोखे में रहा , गलती ये अक्सर हुई !
    पत्थर है वो , पूजा के काबिल ,
    मैं फूल, मेरी दुर्गति खिल कर हुई !

    एक से बढ्कर एक है.... लाजवाब....
    बहुत बहुत बधाई.....

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