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बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

उनसे महज़ दोस्ती की है ...



उनसे महज़ दोस्ती की है !
पर उनके नाम ज़िन्दगी की है !!

ग़म को ख़ुशी के चिराग़ों में डाल कर !
बुझते हुए वक़्त पे रौशनी की है !!

आशियाने का सपना पूरा हुआ आख़िर !
खुद के नाम दो गज ज़मीं की है !!

कोई और न आ कर कुचल डाले इन्हें !
अरमानों ने यही सोच कर ख़ुदकुशी की है !!

'गिरि' ने खुद को गुनाहगार साबित कर के !
कई दिलों के बीच फ़ासले में कमी की है !!


- संकर्षण गिरि

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