बुधवार, 1 दिसंबर 2010
जन्नत
मैं तुम्हारे साथ ही हूँ ,
हर जगह , हर वक़्त , हर पल !
तुम मुझे भूलो, नज़र फेरो ,
या मेरा त्याग कर दो ,
खामोश रह कर मैं तुम्हारी हर एक इच्छा को ,
सम्मान दूंगा और तुमसे दूर हो लूँगा !
दूर हो लूँगा मगर इतना नहीं कि ,
जब जरूरत हो मेरी मैं आ नहीं पाऊं ;
दूर होने से मेरा आशय यही है ,
जब पुकारो तुम , मैं खुद को रोक न पाऊं !
ज़िन्दगी ने दगा दी गर ,
आसमा वाले से कहूँगा मेरी जन्नत ज़मी पर है ,
मुझे रोको नहीं ,
और जाने दो भटकती रूह बन कर ही सही !
आसमां वाले को पता तो चले आखिर ,
कि कोई छोड़ भी सकता बनाए उसके जन्नत को !
जन्नत तुम ही हो ,
और मेरी कल्पना की ,
साकार मूर्ति एक तुम ही तो हो केवल !
मैं तुम्हारे साथ ही हूँ ,
हर जगह , हर वक़्त , हर पल !
- संकर्षण गिरि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bahut khub //
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी ने दगा दी गर ,
आसमा वाले से कहूँगा मेरी जन्नत ज़मी पर है ,
मुझे रोको नहीं ,
और जाने दो भटकती रूह बन कर ही सही !//
mere bhi blog par aaiiye//
आसमां वाले को पता तो चले आखिर ,
जवाब देंहटाएंकि कोई छोड़ भी सकता बनाए उसके जन्नत को bhi !