MyBlog


View My Stats

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

अभाव

हिंदी की कक्षा में अक्सर हमें ,

रिक्त स्थानों की पूर्ति करने को कहा जाता था...

और हम बड़े चाव से ,

सटीक शब्दों से ,

पूरा कर देते थे दिए गए अधूरे वाक्य को !


आज... जब तुम चले गए हो ,

और

तुम्हारा स्थान रिक्त हो गया है ...

कैसे पूर्ति करूँ उस अभाव की ?


कागज़ और जीवन में यही तो फर्क है ,

कागज़ को शब्द मिल जाते हैं ,

जीवन रह जाता है -

अकेला , असहाय , अपूर्ण , रिक्त ...!!!

- संकर्षण गिरि

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही गिरी जी ..
    रिक्त स्थान भरना बहुत ही मुश्किल है
    माँ -पिता का प्यार हो ...या दोस्तों की चुहलबाजी

    जवाब देंहटाएं
  2. rikht sthan bharna hota to hum kuch v bhar dete,
    par tujhe bhara tha jeevan me khushi k liye,
    shayad gam ko bhul gaya tha main majak samajh kar,
    jindagi ne dobaara prashna pooch diya .......
    ab kaise bharu teri jagah ko ek sapna samjh kar

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह संकर्षण गिरि साहब , बहुत ही सुन्दर और भावुक प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  4. Aaplogo ke protsaahan ke liye shukriya... Aisi koshish aage bhi zaari rahegi...

    जवाब देंहटाएं