जब से मैं खुद से मिला हूँ !
मैं अकेला हो चला हूँ!
चाँद खुद से नहीं रौशन ,
मैं मगर जलता दीया हूँ !
ठोकर लगी तो बैठ जाऊं ?
आँधियों का सिलसिला हूँ !
वो मुझमे देखता है अक्स अपनी ,
महबूब का मैं आइना हूँ !
फूल जैसे धूल में लिपटे हुए हों ,
जैसा भी हूँ अपनी माँ का लाड़ला हूँ !
- संकर्षण गिरि
वाह ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
धूल में लिपटा रहूँ या पंक से सनूँ ,
जवाब देंहटाएंमैं कमल हूँ,और हर दम ही खिला हूँ.
बहुत सुन्दर
voice of heart...
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