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शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

जब से मैं खुद से मिला हूँ ...


जब से मैं खुद से मिला हूँ !

मैं अकेला हो चला हूँ!



चाँद खुद से नहीं रौशन ,

मैं मगर जलता दीया हूँ !



ठोकर लगी तो बैठ जाऊं ?

आँधियों का सिलसिला हूँ !



वो मुझमे देखता है अक्स अपनी ,

महबूब का मैं आइना हूँ !



फूल जैसे धूल में लिपटे हुए हों ,

जैसा भी हूँ अपनी माँ का लाड़ला हूँ !





- संकर्षण गिरि

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