जहाँ ठोकर की थी उम्मीद , वहीं पर खड़ा हुआ !
मैं ज़माने की जलती निगाहों के बीच बड़ा हुआ !!
बड़ा अनमोल हूँ लेकिन पहुँच से दूर हूँ सबकी !
मुझे वो ढूँढ लेंगे , एक खज़ाना हूँ गड़ा हुआ !!
मेरी आँखों में सपने और मेरे पाँव में छाले !
मेरे है सामने मंज़िल औ' मैं गुमसुम , डरा हुआ !!
मुझे बेशक़ बुरा समझे कोई , बिसरे कोई !
मैं अपने आप में उलझा हुआ , उखड़ा हुआ !!
बहुत ही पाक़ नज़रों से मुझे देखा किये !
मेरा महबूब मेरे रग-रग में है भरा हुआ !!
- संकर्षण गिरि
बहुत हि सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंजहाँ ठोकर की थी उम्मीद , वहीं पर खड़ा हुआ !
जवाब देंहटाएंमैं ज़माने की जलती निगाहों के बीच बड़ा हुआ !!
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
बेहतरीन प्रस्तुति...
kafi gahrai hai aapke shabdon me....
हटाएंShukriya Nupur ji! :)
हटाएंबहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी खूबसूरत गज़ल...
जवाब देंहटाएंDhanyawaad, Pallavi ji! :)
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