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शुक्रवार, 27 मई 2011

तुम मुझको गलबाँही देना ...

तुम मुझको गलबाँही देना , मैं दूँगा संसार !
तुम रखना बस नींव प्रेम की , मैं दूँगा विस्तार !!

तुम नभ की जब ओर तकोगी , छूने की आशा में !
मैं तब साथ तुम्हारे चल कर , चुनूँगा पथ के ख़ार !!

मेरी जितनी ऊँचाई है , उतनी ऊँची तुम !
हम दोनों का एक दूसरे पर है सम अधिकार !!

प्रेम भावना होगी तब ही सफल सुखद जीवन होगा !
अमित स्नेह से ढह जाती है बीच खड़ी दीवार !!

तुम ही हो सर्वस्व , तुम ही जीवन हो , तुम हो प्राण !
तुम मेरे भावी जीवन की एकमात्र आधार !!


- संकर्षण गिरि

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