तुम मुझको गलबाँही देना , मैं दूँगा संसार !
तुम रखना बस नींव प्रेम की , मैं दूँगा विस्तार !!
तुम नभ की जब ओर तकोगी , छूने की आशा में !
मैं तब साथ तुम्हारे चल कर , चुनूँगा पथ के ख़ार !!
मेरी जितनी ऊँचाई है , उतनी ऊँची तुम !
हम दोनों का एक दूसरे पर है सम अधिकार !!
प्रेम भावना होगी तब ही सफल सुखद जीवन होगा !
अमित स्नेह से ढह जाती है बीच खड़ी दीवार !!
तुम ही हो सर्वस्व , तुम ही जीवन हो , तुम हो प्राण !
तुम मेरे भावी जीवन की एकमात्र आधार !!
- संकर्षण गिरि
तुम रखना बस नींव प्रेम की , मैं दूँगा विस्तार !!
जवाब देंहटाएंwaah brother....
Shukriya bhai... :)
जवाब देंहटाएंभाव सुन्दर हैं....ये सदैव बने रहें ...यही शुभ कामना है
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