नयनाभिराम है दृश्य ,
क्योंकि तक रहे नयन हैं तुमको !
अखिल सृष्टि के कोलाहल में ज्यों कोकिल की वाणी ,
अंतर के सूनेपन को भरने वाली कल्याणी !
आज हिलोरें मार रहा उर पा अपनी प्रेयसी को ,
आज नयन के कोरों में उठ छलक पड़ा है पानी !
आज अलौकिकता को मैंने अपनी बाहों में घेरा ,
आज भुवन संपूर्ण मुझे दिखलाई पड़ता है मेरा ;
आज होड़ है आसमान से , इन्द्रधनुष से ,
आज चन्द्रमा को गुदगुदी लगाई , तारों को छेड़ा !
पोर - पोर में ख़ुशी ,
क्योंकि छक रहे नयन हैं तुमको !
नयनाभिराम है दृश्य ,
क्योंकि तक रहे नयन हैं तुमको !
- संकर्षण गिरि
आज अलौकिकता को मैंने अपनी बाहों में घेरा ,
जवाब देंहटाएंआज भुवन संपूर्ण मुझे दिखलाई पड़ता है मेरा ;
आज होड़ है आसमान से , इन्द्रधनुष से ,
आज चन्द्रमा को गुदगुदी लगाई , तारों को छेड़ा !
बहुत खुबसूरत पंक्तियां.............
:) thank you
जवाब देंहटाएंह्रदय के भाव का काव्यात्मक चित्रण सुन्दर है
जवाब देंहटाएंJi shukriya :)
जवाब देंहटाएंसंकर्षण भाई, आपकी कविताओं और गज़लों से दो-चार हुआ. आपमें काफी संभावनाएं दिखी. भावनाएँ बहुत अच्छी है पर शिल्प पर थोड़ी और मेहनत कि जरुरत है. आपके लेखन और जीवन के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ.
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