वक़्त की उनको कमी है, क्या करूँ ,
मेरी आँखों में नमी है, क्या करूँ !
चाहता हूँ क़ैद से आज़ाद होना ,
ऊपर फ़लक नीचे ज़मीं है , क्या करूँ !
आह लब पर है मगर चुपचाप है ,
ख़ामोश दिल में खलबली है, क्या करूँ !
मंज़िल मिली सबको जो गिर कर उठ चले ,
राह मेरी दलदली है , क्या करूँ !
'गिरि' के घर खुदा ने दी है दस्तक ,
और वो घर पर नहीं है , क्या करूँ !
-- संकर्षण गिरि
Bahut barhiya. Maqta bemisal hai. Now you feel ghazal likhne ka apna hi mazaa hai. Do suggest your url on hinkhoj.com
जवाब देंहटाएंAwesome!!
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