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बुधवार, 11 अगस्त 2010

क्या करूँ ...

वक़्त की उनको कमी है, क्या करूँ ,
मेरी आँखों में नमी है, क्या करूँ !

चाहता हूँ क़ैद से आज़ाद होना ,
ऊपर फ़लक नीचे ज़मीं है , क्या करूँ !

आह लब पर है मगर चुपचाप है ,
ख़ामोश दिल में खलबली है, क्या करूँ !

मंज़िल मिली सबको जो गिर कर उठ चले ,
राह मेरी दलदली है , क्या करूँ !

'गिरि' के घर खुदा ने दी है दस्तक ,
और वो घर पर नहीं है , क्या करूँ !


-- संकर्षण गिरि

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