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रविवार, 16 मई 2010

जिसे इश्क़ का रोग लगा है !



जिसे इश्क़ का रोग लगा है !

उससे पूछो क्या इंतज़ार ,
क्या प्यास और क्या है ख़ुमार ?
वो बतलायेगा सही किसी की याद में जो हर रात जगा है !
जिसे इश्क़ का रोग लगा है !


कितनों की पूरी हुई चाह ,
कुछ लुटे यहाँ पर बीच राह ,
कितनों को बेरहम वक़्त ने ला क़रीब दे दिया दगा है !
जिसे इश्क़ का रोग लगा है !


प्रेयसी को पाने का जूनून ,
पहुँचाता है उसको सुकून ,
कहता महबूबा की याद में रोने का भी अलग मज़ा है !
जिसे इश्क़ का रोग लगा है !
जिसे इश्क़ का रोग लगा है !


-- संकर्षण गिरि


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