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मंगलवार, 18 मई 2010

जितनी सागर की लहरें हैं...


जितनी सागर की लहरें हैं , उतने ही हैं बूँद नयन में !


तब मैंने बाहें फैलायीं

लड़खड़ा रहा था जब प्रकाश ,

तब मैंने उसके दुःख बाँटे

सिमटा जाता था जब आकाश ;

मैंने पूरा सहयोग दिया

जिसकी जैसी भी व्यथा रही ,

तब आशा की किरणें लाया

जब दिखा मुझे कोई निराश !

आँसू पी कर मुस्कान बिखेरा है मैंने सबके जीवन में ।

जितनी सागर की लहरें हैं उतने ही हैं बूँद नयन में !


सब कुछ पाने के बाद भी

कुछ खोने का अहसास है !

उर क्यों अतृप्त है पता नहीं

मन क्यों इन दिनों उदास है ;

कब तलक , कहाँ तक सीधा रस्ता

मिलेगा जीवन में ,

भटक रही है सोच मेरी

मिल गया इसे वनवास है !

शिथिल - सी मेरी चाल देख ताकत - सी आई क्रूर पवन में !

जितनी सागर की लहरें हैं उतने ही हैं बूँद नयन में !



-- संकर्षण गिरि

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